आँखों देखा ही सच निकला पर कान सही न मिला !
जिसको ईश्वर माना था वो पाषाण सही न मिला !
दुर्भाग्य हमारा मंदिर में भी वर्ग भेद पलता ,
विश्वास किया था जिस पर वो भगवान सही न मिला !
बिन हानि लाभ सोचे हमने भावुकता ही जानी ,
अनजान सही निकले लेकिन मेहमान सही न मिला !
कुछ साधारण कुछ कठिन प्रश्न आए सम्मुख जब भी,
हर कठिन सही निकला लेकिन आसान सही न मिला !
खादी में हम क्यों ढूंढ रहे हैं अब तक गाँधी को ,
मानक जो भी माने हमने प्रति मान सही न मिला !
साधन ही साध्य हुआ जग में हम अपना पथ भूले,
अर्जुन की भांति हमें यारो रथवान सही न मिला !
उन ऊँचे ऊँचे महलों का अभिमान गिराने को ,
आँधी से हाथ मिलाने को तूफान सही न मिला !
गुरु के बिन ज्ञान नहीं मिलता इस दुनियाँ ने माना ,
“हलधर ” को ज्ञान मिला लेकिन संज्ञान सही न मिला !
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून