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ग़ज़ल हिंदी – जसवीर सिंह हलधर

आँखों देखा ही सच निकला पर कान सही न मिला !

जिसको ईश्वर माना था वो पाषाण सही न मिला !

 

दुर्भाग्य हमारा मंदिर में भी वर्ग भेद पलता ,

विश्वास किया था जिस पर वो भगवान सही न मिला !

 

बिन हानि लाभ सोचे हमने भावुकता ही जानी ,

अनजान सही निकले लेकिन मेहमान सही न मिला !

 

कुछ साधारण कुछ कठिन प्रश्न आए सम्मुख जब भी,

हर कठिन सही निकला लेकिन आसान सही न मिला !

 

खादी में हम क्यों ढूंढ रहे हैं अब तक गाँधी को ,

मानक जो भी माने हमने प्रति मान सही न मिला !

 

साधन ही साध्य हुआ जग में हम अपना पथ भूले,

अर्जुन की भांति हमें यारो रथवान सही न मिला !

 

उन ऊँचे ऊँचे महलों का अभिमान गिराने को ,

आँधी से हाथ मिलाने को तूफान सही न मिला !

 

गुरु के बिन ज्ञान नहीं मिलता इस दुनियाँ ने माना ,

“हलधर ” को ज्ञान मिला लेकिन संज्ञान  सही न मिला !

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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