बेबात तड़प के क्या होगा,
अंजामे-नफरत क्या होगा।
आओ हम तुम मिल के सोंचें,
नाशाद चमन का क्या होगा।
दिल से नफरत को दूर करें,
हर बार दहक के क्या होगा।
जानें समझे चल गौर करें
बरबाद अमन का क्या होगा।
सब अपने कोई गैर नहीं,
उजड़े हर घर का क्या होगा।
क्या ठीक लगे हरदम लड़ना,
अब रहम करम का क्या होगा।
जब हर हाँथों में हो खंजर,
तब प्यार मुहब्बत क्या होगा।
चल सीखें मिलकर के रहना,
हम एक रहें तो क्या होगा।
‘अनि’ मस्त फिजा में झूमेंगा
फिर सोंचो मंज़र क्या होगा।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड