हर प्राणी में ईश का, नूर समाया है,
जिसने यह समझा वही, हरि को पाया है।
धन के पीछे भागकर, जो समय गँवाते,
अपनेपन के हेतु वे, अक्सर पछताते।
जीवन संध्या देखकर, पढ़ते करनी को,
बचा न पाते डूबती,जीवन तरनी को।
क्योंकि वक़्त बीता नहीं, वापस आया है……. ।
जो भी आया है जगत , उसको जाना है,
कर्मों का फल हाथ में, उसके आना है।
वृक्ष लगा उपकार का, यदि सुख पाना है,
हर पल होता कीमती, उर में लाना है।
समझ सका जो बात यह,वह मुस्काया है……. ।
भेदभाव के बीज को, जिसने बोया है,
भाई चारे का शहद, उसने खोया है।
आपस में विश्वास बिन, मुश्किल जीना है,
चैन चुराया स्वार्थ ने, रिश्ते छीना है।
हम सबको सत्संग ने, यही सिखाया है……… ।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश