neerajtimes.com – धारा-शृंखला के इस कार्यक्रम में देश के सम्मानित कवियों और कवयित्रियों ने महाकवि की स्मृतियों को साँझा करते हुए उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलिस्वरूप अपनी रचनाओं से मंच से जुड़ें श्रोताओं के हृदय को भी अभिभूत किया! मंच पर फाउंडेशन की अध्यक्षा रागिनी भारद्वाज ने कार्यक्रम को आरंभ करने से पहले पूज्य बाबूजी को कोटिशः नमन वंदन निवेदित करते हुए कहा कि बेटी के लिए पिता से बिछोह की अनुभूति अत्यंत पीड़ा दायक होती है!
सर्वप्रथम मंच पर आचार्य उमाशंकर सिंह ने महाकवि को समर्पित एक कविता सुनाते हुए उन्हें श्रद्धांजलि निवेदित की-पाते वही परम को जो ख़ुद को मिटाते हैंः बनते वही हैं तरुवर, ख़ुद जो मिटाते हैं! डॉ सुमेधा ने अपनी कविता में फागुन की मस्ती का उल्लेख करती हैं कि जंगल में दहकता पलाश,अग्नि ज्वाला का आभास ,मन चंचल हुआ अनायास! के की कृष्णा ने महाकवि की कुछ पंक्तियों को सुनाते हुए अपना गीत सुनाया ये कैसा सिलसिला है ये कैसी ज़ुस्तजूं! विजय प्रेमी ने प्रभात पर रची कुछ पंक्तियों से श्रोताओं की आँखों को नम कर दिया- पुण्यता के पद कमल तल, तीर्थकवि कुल थे कवि केदार! डॉ सुषमा ने भी काव्यांजलि अर्पित करते हुए अपनी सुंदर रचना वसंत ऋतु सुनाई! वरिष्ठ कवयित्री पूनम शर्मा ने ने महाकवि की तेजस्विता की चर्चा करते हुए अपनी कविता पढ़ीः कितने द्वार खुले नभ के तब अवतरित केदार हुए! नूतन पांडेय ने बाबूजी की “श्वेतनील” कविता संग्रह की एक कविता से अपनी प्रस्तुति दी।.डॉ प्रतिभा पाराशर ने अपनी रचना में बताया कि बड़ा होने का दंभ भरना प्राणी को मुँह के बल गिरा देता है! डॉ सुषमा तिवारी ने नारी शक्ति पर अपनी रचना से बताया कि दोनों एक दूसरे से बिलकुल भिन्न होने पर भी एक दूसरे के पूरक होते हैं!
कार्यक्रम की समाप्ति करते हुए रागिनी भारद्वाज ने समस्त साहित्यकारों का आभार व्यक्त किया। मंच से जुड़े स्नेही एवं काव्य मर्मज्ञ श्रोताओं का धन्यवाद किया।यह भी कहा कि फाउंडेशन के प्रति आप सबों की शुभकामनाएँ, आपकी पूज्य बाबूजी महाकवि प्रभात के प्रति इतनी आस्था हमें बल देती हैं इस संस्था को और बेहतर बनाने की। आख़िरी में रागिनी ने महाकवि की चार पंक्तियाँ सुनाते हुए अपनी बात ख़त्म की-
जन्म क्या जाने कि, हूँ जीता हुआ, मैं मरण क्या जाने कि, हूँ मैं किसका समर्पित गान ग्रंथि खोलो प्रान ग्रंथि खोलो प्रान।