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लोग आज खुशहाली में – अनिरुद्ध कुमार

पीजा, बरगर थाली में,

प्रान भरल बा प्याली में।

मिटजाई भूख गरीबी,

सब कुछ हालाहाली में।

 

बाप माई राह जोहस,

उलझल साला साली में।

छौ पाँच दिनराते करीं,

मन सदा कुतुरचाली में।

 

बोतलमें पानी बीके,

खून बहेला नाली में।

असलीके के पूछेला,

मन लागेला जाली में।

 

आरपार के सब सोंचे,

बड़ पहचान बवाली में,

भेदभाव लहलह बावे,

पूछ बड़ी कूचाली में

 

चलनियों सूपसे पूछे,

का झाँकी ले हाली में।

दुअरा बबूल लगायेब,

कांटा निकली डाली में।

 

आज के हालात देखीं,

का ना बावे ताली में।

गदगद लागे जनमानस,

अवगुन खड़ा सवाली में।

 

प्रेम धारा छलछल बहे,

नेह भरल बा गाली में।

उलट फेर कबना होला,

लोग आज खुशहाली में।

-अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड

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