एक क्षण तो तनिक पास बैठो सही…..
मान जाओ चलो !आज हठ छोड़ दो।
जा रहे हो कहां दूर वनवास में,
राग मंडित प्रणय सिक्त अमराई है ।
दो दिवस का मिला छुद्र जीवन यहां,
इस जगत में प्रिये !व्यर्थ निठुराई है ।
क्यों हुई क्लेश से है तुम्हें मित्रता-
रुक्षता की सभी बेड़ियां तोड़ दो ।
पा सकोगे न तुम कुछ कहा मान लो,
इस तरह मत करो प्रेम अवहेलना ।
प्राप्त होता तुम्हें क्या भला बोल दो,
बांटकर यातना ,झेलकर वेदना ?
तोड़ना तो सरल है हृदय खेल में –
नेह लेकिन सफल जब हृदय जोड़ दो ।
एक क्षण तो तनिक पास बैठो सही,
मान जाओ चलो ! आज हठ छोड़ दो ।
-अनुराधा , पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली