मनोरंजन

गीत – जसवीर सिंह हलधर

लोक तंत्र का महा पात्र हूँ ।

खंडित भारत शेष गात्र  हूँ ।।

सरहद का लेखा जोखा हूँ ,

युद्धों का भी अर्थ शास्त्र हूँ ।।

 

शूलों की चुभन झेलता हूँ ।

साँपों से रोज खेलता हूँ ।।

झोपड़ियों की पीड़ा गाता ,

जीवन को रोज ठेलता हूँ ।।

भूखे बच्चों की चीखों में ,

करुणा का मैं शोध छात्र हूँ ।।

लोक तंत्र का महा पात्र हूँ !!1

 

फूलों में सुरभि मंद रहता ।

कांटों से तीक्ष्ण छंद कहता ।।

भँवरों की रुन झुन भी गाता ,

कलियों की आंखों में बहता ।।

जीवन के पथरीले पथ पर ,

सांसें गिनता फसा यात्र हूँ ।।

लोक तंत्र का महा पात्र हूँ !!2

 

रोजाना दंगे झेल रहा ।

घाटी में पंगे झेल रहा ।।

कश्यप कुल को रोते देखा ,

कुछ निर्णय नंगे झेल रहा ।।

राहत का मैं एक शिविर हूँ ,

आतंकों का कफन मात्र हूँ ।।

लोक तंत्र का महा पात्र हूँ !!3

 

भारत को बटते देखा है ।

लोगों को कटते देखा है ।।

गाँधी की सत्य अहिंसा का,

गुब्बारा फटते देखा है ।।

लाशों से भरी रेल हूं  मैं ,

आजादी की अर्ध रात्र हूँ ।।

लोक तंत्र का महा पात्र हूँ !!4

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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