लोक तंत्र का महा पात्र हूँ ।
खंडित भारत शेष गात्र हूँ ।।
सरहद का लेखा जोखा हूँ ,
युद्धों का भी अर्थ शास्त्र हूँ ।।
शूलों की चुभन झेलता हूँ ।
साँपों से रोज खेलता हूँ ।।
झोपड़ियों की पीड़ा गाता ,
जीवन को रोज ठेलता हूँ ।।
भूखे बच्चों की चीखों में ,
करुणा का मैं शोध छात्र हूँ ।।
लोक तंत्र का महा पात्र हूँ !!1
फूलों में सुरभि मंद रहता ।
कांटों से तीक्ष्ण छंद कहता ।।
भँवरों की रुन झुन भी गाता ,
कलियों की आंखों में बहता ।।
जीवन के पथरीले पथ पर ,
सांसें गिनता फसा यात्र हूँ ।।
लोक तंत्र का महा पात्र हूँ !!2
रोजाना दंगे झेल रहा ।
घाटी में पंगे झेल रहा ।।
कश्यप कुल को रोते देखा ,
कुछ निर्णय नंगे झेल रहा ।।
राहत का मैं एक शिविर हूँ ,
आतंकों का कफन मात्र हूँ ।।
लोक तंत्र का महा पात्र हूँ !!3
भारत को बटते देखा है ।
लोगों को कटते देखा है ।।
गाँधी की सत्य अहिंसा का,
गुब्बारा फटते देखा है ।।
लाशों से भरी रेल हूं मैं ,
आजादी की अर्ध रात्र हूँ ।।
लोक तंत्र का महा पात्र हूँ !!4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून