मनोरंजन

नव संवत्सर – सुनील गुप्ता

(1)”न”, नवल धवलसी खिल-खिल आयी

चहुँओर से ये प्रकृति   !

चली वसुंधरा पहने हरियाली…..,

सज आयी है ये पूरी धरती  !!

(2)”व”, वन उपवन कानन हैं फूले

कोयल डाली-डाली है कूके !

सबके आनन हैं मुस्कुराए…..,

चलें उमंग तरंग में सब झूमें !!

(3)”सं”, संगीत की स्वर लहरी गूंजें

हर्षा रहे यहां सब तन मन !

उमंगित प्रकृति  नाच रही….,

खिलखिलाए है सब ओर जीवन !!

(4)”व”, वर्ष नव संवत्सर का प्रारम्भ

हो रहा पूजा पाठ अर्चन संग !

खुशियों का हो रहा आगाज….,

उत्साहित है समूचा जन मन  !!

(5)”त् “, त्यौहार है ये आनंद का

धर्म संस्कृति के गौरव का  !

छिपा है इसमें कल्याण सबका……,

है ये उत्सव जीवन उत्कर्ष का  !!

(6)”स”, सरस सलिल सी बनी प्रकृति

दिखा रही है रुप अलौकिक  !

करके नौ दिन माँ की पूजा…….,

होती है हममें शक्ति उर्जित  !!

(7)”र”, रस रंग से सराबोर धरा

नववर्ष का स्वागत है करती !

अब बदल रहा है रुप सारा….,

सबको हर्षाए ये चलती  !!

(8)”नव संवत्सर “, है आनंद का अवसर

घर-घर पर हम इसें मनाएं !

लगा तिलक, बांटे मिठाई…..,

चहुँ ओर ही खुशियां फैलाएं  !!

-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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