(1)”न”, नवल धवलसी खिल-खिल आयी
चहुँओर से ये प्रकृति !
चली वसुंधरा पहने हरियाली…..,
सज आयी है ये पूरी धरती !!
(2)”व”, वन उपवन कानन हैं फूले
कोयल डाली-डाली है कूके !
सबके आनन हैं मुस्कुराए…..,
चलें उमंग तरंग में सब झूमें !!
(3)”सं”, संगीत की स्वर लहरी गूंजें
हर्षा रहे यहां सब तन मन !
उमंगित प्रकृति नाच रही….,
खिलखिलाए है सब ओर जीवन !!
(4)”व”, वर्ष नव संवत्सर का प्रारम्भ
हो रहा पूजा पाठ अर्चन संग !
खुशियों का हो रहा आगाज….,
उत्साहित है समूचा जन मन !!
(5)”त् “, त्यौहार है ये आनंद का
धर्म संस्कृति के गौरव का !
छिपा है इसमें कल्याण सबका……,
है ये उत्सव जीवन उत्कर्ष का !!
(6)”स”, सरस सलिल सी बनी प्रकृति
दिखा रही है रुप अलौकिक !
करके नौ दिन माँ की पूजा…….,
होती है हममें शक्ति उर्जित !!
(7)”र”, रस रंग से सराबोर धरा
नववर्ष का स्वागत है करती !
अब बदल रहा है रुप सारा….,
सबको हर्षाए ये चलती !!
(8)”नव संवत्सर “, है आनंद का अवसर
घर-घर पर हम इसें मनाएं !
लगा तिलक, बांटे मिठाई…..,
चहुँ ओर ही खुशियां फैलाएं !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान