मनोरंजन

नाव काग़ज़ की – सुनील गुप्ता

आंसुओं के दरिया में

बह रही काग़ज़ की नाव  !

जाना है इसे पता नहीं……,

क्या भर पाएंगे जीवन घाव !!1!!

 

सैलाब यहां जो आया है

ले रहा नहीं थमने का नाम  !

जाकर कहां पर रुकेगा….,

बिगाड़ेगा ये किसका काम!!2!!

 

मुद्दत हुयी उसे यहां से गए

समझ ना सका मन भाव !

वो खा रहा हिचकोले कब से…..,

कहां आएगा जाकर ठहराव !!3!!

 

कश्ती बना ये जीवन

बह रहा नित भवसागर में  !

मांझी को ढूंढ लेता तो…..,

शायद मिल जाता साहिल उसे !!4!!

 

समुन्दर है ये बहुत गहरा

टिक पाना है यहां पर मुश्किल !

ग़र मिल जाए तिनके का सहारा….,

तो, निश्चित निकल आएगा हल !!5!!

-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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