लोभ लालच के गणित में धूल रिश्तों पर जमी है ।
आँसुओं में है दिखावा शुष्क आंखों में नमी है ।
आप गर कस्ती थे मुझको पार होना चाहिए था ,
आपके व्यवहार में तो दिख रही रूखी गमी है ।
रूस से यूक्रेन का अब युद्ध घटक हो चुका है ,
देख कर हरकत अनौखी सांस दुखियों की थमी है ।
आप मानो या न मानो पर मुझे विस्वास पक्का ,
विश्व पूरा देख आया एक जैसा आदमी है ।
साधनों में साधना गुम धर्म गुम आडंबरों में ,
साधुओं पर कार महँगी ज्ञान की लेकिन कमी है ।
जिंदगी कब तक थकायेगी नहीं मालूम मुझको ,
कौन जाने मौत कितनी सांस के द्वारे रमी है ।
सभ्यता दरियाब से तालाब होती जा रही है ,
हाल यदि ये ही रहा तो सूखना फिर लाज़मी है ।
छंद ,दोहे और ग़ज़लें, गीत भी लिखने लगा हूँ ,
शब्द का भंडार है टकसाल “हलधर” दमदमी है ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून