मैं तुझे भूल जाऊँ ऐसा खुदा न करे,
ये अलग बात है तू कभी वफ़ा न करे।
बेशक न हो गुंजाइश मुलाक़ात की पर,
तेरी ये बेरुखी कभी हमें जुदा न करे।
जो मुहब्बत पर बोझ बन जाए कभी,
मुलाकात हमसे ऐसी मेहरबां न करे।
बहुत कुछ खो दिया हमने वास्ते तेरे,
अब और मुझको तू यूँ छला न करे।
मुददत से हूँ सजायाफ्ता सा मगर,
अब तो मेरे लिए कोई जफ़ा न करे।
अब जीने की ख्वाहिश किसे निराश,
खुदा करे वो मेरे हक़ में दुआ न करे।
– विनोद निराश, देहरादून