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मन की गिरहों में झांकती निशा की पुस्तक ‘उन्स’ – रेखा मित्तल

neerajtimes.com चंडीगढ़ – मैंने निशा की वर्कशॉप अटेंड की। मैं उनको देखते ही उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हो गई। कुछ जादुई व्यक्तित्व रखती हैं वह। बस वहीं पर मैंने उनसे उनकी पुस्तक लेने की जिद कर दी । और देखिए ,छोटे बच्चे की जिद की तरह उन्होंने मुझे बहुत प्यार से पुस्तक भेज दी ।

“उन्स” पुस्तक का शीर्षक ही आकर्षित करता है!  पुस्तक खोलते सबसे पहले जो पेज खुला उस कविता का शीर्षक था “बेटियां”, मुझे वैसे भी बेटियों से बहुत प्यार है। उसकी लाइन ‘बिना कहे ही जान लेती है’ अपने आप में ही सब कुछ कह देती है।

“पिता और पहाड़”, दोनों का व्यक्तित्व एक जैसा है, बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति!! “मां “मेरी नस-नस में ,शामिल हो मेरे जीवन की कश्मकश में, सच में मांँ हम सब में इतनी गहराई में बस जाती है । “दिल, दिमाग ,कलाकार ” कलाकार के दिल और दिमाग के अंतर्द्वंद को दर्शाती है।

“मैं” मैं न रहा, कविता में मैं का मैं से हम हो जाना, बहुत गहरी अभिव्यक्ति है। “कैसे-कैसे रूप बदलती है जिंदगी” में आडी-टेढ़ी तरसती जिंदगी पर कलम चलाई है। “हां तेरा वक्त जरूर आएगा” सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती है । “भाई “कविता में, भावों की सरल सहज अभिव्यक्ति, पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे हमारी अपनी कहानी है। “अजनबी” मन की गिरहों में झांकती हैं। आंखों से सच बोल दो”, में दिल की पोल खोलती है ।

सभी कविताओं में एक रवानगी है और धीरे-धीरे मन में उतरती चली जाती हैं। “जद्दोजहद”,आजकल के भागदौड़ के जीवन की कशमकश को दर्शाती हुई, बेहतरीन रचना है। “जो पागल न हो वह प्यार ही क्या” प्रेम की गहराइयों को बयां करती है। “चमक” अपने प्रिय के प्रति भाव, सास बहुत खास हो तुम, सुंदर अभिव्यक्ति है।

मैंने जैसे ही पुस्तक ली उसके बाद एक के बाद एक पन्ने पलटती गई, पूरी किताब को पढ़े बिना छोड़ ही न पाई । निशा  ने मुझे बताया यह हिंदी में उनकी प्रथम पुस्तक है परंतु ऐसा देखकर कहीं भी नहीं लगा, विषय और विषय वस्तु दोनों में लेखिका की परिपक्वता दृष्टिगोचर होती है। दोस्ती, प्यार, मोहब्बत, और रिश्ते-नातों को गहराई से तलाशती कविताएँ !

– रेखा मित्तल, सेक्टर-43, चंडीगढ़

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