मैं तुम्हें फिर मिलूंगी,
कहां कैसे पर मैं तुम्हें फिर मिलूंगी।।
सूरज की लाली बनकर,
तप तपाते शरीर को फिर मिलूंगी,
पर मैं तुम्हें फिर मिलूंगी।।
कहां मिलूंगी कैसे मिलूंगी पर मैं तुम्हे फिर मिलूंगी,
बारिश की बून्दंबन कर तुम्हें भिगोकर फिर मिलूंगी।।
कहां मिलूंगी कैसे मिलूंगी पर मैं फिर मिलूंगी,,,
तेरे आंखों में अश्क बन कर मिलूंगी,
तेरे आंखों से आंशु बन कर तेरे दामन पर गिरूंगी।।
पर मैं फिर मिलूंगी,
तुम्हारे अधरौं की मुस्कान या
फिर कंप कंपाते लव्जों में मिलूंगी।।
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी,
कहां कैसे पर मैं तुम्हें फिर मिलूंगी।
– सुन्दरी नौटियाल (शोभा,मोहन प्रियाशी) , देहरादून, उत्तराखंड