क्यों लुभाते हैं गुजरे जमाने,
जब रुलाते हैं गुजरे जमाने।
लौटते कोई लम्हे नहीं हैं,
यह बताते हैं गुजरे जमाने।
कौन पाया है हक से मुहब्बत,
गुनगुनाते हैं गुजरे जमाने।
आपने जो भी खोया कमाया,
वह दिखाते हैं गुजरे जमाने।
बात कहती है ‘मधु’ प्रेम से ही,
मुस्कराते हैं गुजरे जमाने।
— मधु शुक्ला,सतना, मध्यप्रदेश