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अम्बेडकर नगर के एक मात्र वीर चक्र विजेता है धनुषधारी सिंह- हरी राम यादव

Neerajtimes.com- तमसा नदी की गोद में बसे गांव सोनावां का नाम देश के इतिहास में अपनी वीरता और बलिदान से अमर करने वाले  सिपाही धनुषधारी सिंह का जन्म 29 अक्टूबर 1927 को हुआ था। सिपाही धनुषधारी सिंह के पिता का नाम श्री धनराज सिंह तथा माता का नाम श्रीमती सुखना देवी था। वह 29 अक्टूबर 1946 को भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। प्रशिक्षण के पश्चात वह 1 पंजाब रेजिमेंट में पदस्थ हुए। पहले इनका गांव जनपद फैजाबाद की तहसील अकबरपुर का हिस्सा हुआ करता था ।  29  सितम्बर 1995  को अम्बेडकर नगर के अस्तित्व में आने के बाद इनका गांव जनपद अम्बेडकर नगर में आ गया।

कश्मीर के मुद्दे को लेकर पाकिस्तानी सेना ने कबाइलियों के भेष में भारत पर आक्रमण कर दिया। भारत सरकार ने भी युद्ध की घोषणा कर दी। भारत पाक युध्द के समय वह 3 पैरा के साथ काम कर रहे थे। सिपाही धनुषधारी सिंह की पलटन को भी युद्ध भूमि में जाने का आदेश मिला। महज 01 साल 04 महीने की सेना की नौकरी और 20 साल 04 महीने की उम्र में अम्बेडकर नगर के इस वीर ने वह कर दिखाया जिसे किसी को उम्मीद नहीं थी।

25 – 26 फरवरी 1948 की रात को 3 पैरा के दो सेक्शन आगे बढ़ रहे थे। सिपाही धनुषधारी सिंह सबसे आगे और बायीं ओर चलने वाले सेक्शन में थे इस सेक्शन की कमान सूबेदार सावन सिंह के हाथों में थी। यह सेक्शन हेंडन रिज पर स्थित दुश्मन पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ रहा था। आगे बढ़ते हुए इन दोनों सेक्शनों  पर अचानक दुश्मन की ओर से मीडिएम मशीनगनों और राइफलों से भयानक गोलीबारी की जाने लगी। दुश्मन की ओर से की गयी इस भयानक गोलीबारी में सिपाही धनुषधारी सिंह के सेक्शन के बारह जवान हताहत हो गये।  अपने साथी सैनिकों को हताहत होते देख सिपाही धनुषधारी सिंह का खून खौल उठा। सिपाही धनुषधारी सिंह आगे बढ़े और अपनी ब्रेन गन को एक चट्टान के पीछे रखकर दुश्मन की स्थिति पर सटीक भीषण फायरिंग करने लगे। सिपाही धनुषधारी सिंह द्वारा की जा रही फायरिंग से सूबेदार सावन सिंह को मौका मिल गया और वे अपने हताहत जवानों को वहां से पीछे ले जाने में कामयाब रहे । साथ ही साथ सूबेदार सावन सिंह ने अपने पीछे वाले सेक्शन के जवानों को पुनः पुर्ननियोजित किया। सिपाही धनुषधारी सिंह दुश्मन से अपने साथियों का बदल लेने के लिए उद्वेलित हो उठे। वो कुहनी के बल रेंगते हुए आगे बढ़े और दुश्मन पर भीषण फायरिंग करने लगे। सिपाही धनुषधारी सिंह की सटीक और भीषण फायरिंग से दुश्मन सैनिकों के हौसले पस्त हो गये।

सिपाही धनुषधारी सिंह वीरता और कर्तव्य परायणता का परिचय देते हुए अपने दम पर आगे बढ़ते रहे और दुश्मन की गोलाबारी की परवाह न करते हुए उस पर फायरिंग करते रहे। उनकी इस वीरतापूर्ण कार्यवाही से उनका सेक्शन आगे बढ पाया। दुश्मन से वीरता से लड़ते हुए सोनांव के इस लाल ने मातृभूमि का कर्ज चुकाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देकर अपने गांव को इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया। उनकी वीरता और कर्तव्य परायणता के लिए उन्हें 25 फरवरी 1948 को मरणोपरान्त वीर चक्र प्रदान किया गया।

वीर चक्र युद्धकाल का तीसरा सबसे बड़ा सम्मान है। यह सम्मान युद्ध क्षेत्र में असाधारण वीरता के लिए दिया जाता है। सिपाही धनुष धारी सिंह अम्बेडकर नगर के इकलौते वीर चक्र विजेता हैं। इनके बाद अब तक अम्बेडकर नगर में किसी को यह सम्मान नहीं मिला है। किंतु अम्बेडकर नगर जिले के लोग इस वीर की वीरता से अनभिज्ञ हैं। मात्र 20 वर्ष की उम्र में पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने वाले वीर चक्र विजेता सिपाही धनुषधारी सिंह को अंबेडकरनगर के प्रशासन ने भुला दिया है। सिपाही धनुष धारी सिंह के भाई की बेटी श्रीमती रामा देवी अपने चाचा के नाम पर स्मारक बनाए जाने या किसी सरकारी इमारत, सड़क, स्कूल का नामकरण किए जाने या उनके नाम पर तोरणद्वार बनाये जाने को लेकर पिछले कई वर्षों से प्रयासरत है।

देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले इस शहीद को लोग भूलते जा रहे हैं। न तो सरकार सुधि ले रही और न ही स्थानीय जनप्रतिनिधि सुधि ले रहे हैं। सोनावां का यह लाल जो पूरे देश के लिए लड़ा और देश के अस्तित्व को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। आज उस वीर सपूत का परिवार उस सपूत के नाम को बचाने के लिए लड़ रहा है। अब तक जनपद अम्बेडकर नगर में इस वीर के नाम पर एक ईंट तक नहीं लगी है।

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