फफोले कोटि मिलते हैं, रिसा करते रुधिर उनसे ।
प्रलय से कम नहीं होता, किसी से दिल लगाना भी ।
जिसे पग घाव की चिंता, न भूले पाँव दे पथ में।
सतत इक धूप होती है , न कोई छाँव दे पथ में।
सरल होता नहीं जलना, शलभ बनकर दिखा देना….
नहीं तप साधना से कम, प्रणय का प्रण निभाना भी ।
प्रलय से कम नहीं होता, किसी से दिल लगाना भी ।
नयन के अश्रु जल से पूज्य का नित आचमन करना ।
सरल होता नहीं है आरती का दीप बन जलना ।
कभी तो वर्तिका से पूछ लेना ज्ञात तब होगा….
कठिन होता तपन कितना, सतत निज तन जलाना भी ।
प्रलय से कम नहीं होता किसी से दिल लगाना भी ।
विजन में पुष्प बन खिलना , पुनः चुपचाप झर जाना ।
सरल होता न चंदन बन , विरत अम्लान गल पाना ।
नहीं है कम तपस्या से , हवन हित नित्य हवि बनना….
कठिन उर पौध को शोणित पिलाकर सींच पाना भी ।
प्रलय से कम नहीं होता किसी से दिल लगाना भी ।
– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका , दिल्ली