अभी ले गरीबी मिटलना कहीं,
बताईं नजरिया लगेला सही।
खड़ा बा गरीबी जहां के तहां,
पुकारे निहारे इहाँ या उहाँ।।
इहे जान, जानी सयाना कहे,
लुटादी खजाना निशाना कहे।
गरीबी अमीरी कभी ना मिटी,
जमाना सदा राजनीती करी।
गरीबी अमीरी रहल बा रही,
अँधेरा उजाला सटल बा सटी।
समझली तमाशा करे जिंदगी,
इहे कायदा बा सलामत रहीं।
चलल आरहल बा जमाना कहे,
रमायण, उपनिषद, सुदामा कहे।
गले से लगाली हसीं आदमीं,
समाजिक कहानी पुराना कहे।
अमीरी गरीबी त भाई लगे,
खुदाके बनावल खुदाई लगे।
लगाई बुझाई जुदाई समझ,
सबे बरगलावे कमाई लगे।
गुमानी तलाशे हमेशा जमी़ं,
जहाँ के जतावे कहाँ बा कमीं।
अमीरी गरीबी सहोदर लगे,
पिआसल कहे की दमोदर लगे।
सबे आज काबिल करीं ना नया,
खुशी झूम गाये सदा हो बयां।
समय के तकाज़ा उठे नौजवां,
बनाईं जतन से नया आसमां।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड