हरित – हरित है यह धरा, शुभ्र जलद का राज।
अरुणिम आभा है उदित, अति आनन्दित आज।
शीत कोप कुछ कम हुआ, भाया उजला तेज।
फूलों से सज्जित हुई, धरणी की यह सेज।
धरती माता खुश बड़ी, खिलती कलियाँ आज।
सुरभित पुष्पों से बना, प्रभु मस्तक का ताज।।
ऋतु ने बदला रूप है, स्वागत है मधुमास।
पुष्पित अनुपम हर कली, छाया है उल्लास।
मन ऑंगन है झूमता, दिव्य धरा के साथ।
मंगलमय जीवन रहे, सिर पर प्रभु का हाथ।।
अद्भुत सरसों झूमती, पीली चूनर संग।
भौरें भी मदमस्त है, देख कली के रंग।।
सर-सर बहती है हवा, नदियाँ बहती मंद।
गान मधुर है गुँजता, हुये सुवासित कंद।।
आम्र मंजरी फूलती, दिव्य गंध के साथ।
बेला, चम्पा सब चढ़े, परम ब्रह्म के माथ।।
कोयलिया भी गा रही, अपनी मीठी तान।
भृंग मोर भी नाचते, ऋतु को अपना जान।।
कोयल की कुहकन अजब, भौंरें गाते राग।
उपवन में कलियाँ खिली, अनुपम है शृंगार।।
कान्हा की मुरली बजी, राधा नाचे आज।
गोप-ग्वाल सब झूमते, भूले अपने काज।।
वेलेंटाइन वीक है, प्रिया गई प्रिय पास।
प्रेम प्रतीक गुलाब से, मुख पर सोहे हास।।
मना रहे अब रोज़ डे, प्रपोज करते साथ।
दिया रोज़ वो प्यार से, प्रिय सजनी के हाथ।।
सारे डे यह खास हैं, विदेशियों की रीत।
टेड्डी, हग, किश भी चले, इनसे सबकी प्रीत।।
भारत में भी चल रहा, अब इनका ही दौर।
प्रेम मान्य सर्वत्र है, करना तुम भी गौर।।
– नीलू मेहरा, कोलकाता, पश्चिम बंगाल