मनोरंजन

मन की उलझन – मधु शुक्ला

तुम बिन कैसे सुलझाऊँ मैं, मन की उलझन को,

नहीं नियंत्रित रख पाती हूँ, अपनी धड़कन को।

 

साथ  तुम्हारा   संबल  देता,  राह  दिखाता  है,

हर चिंता से मुक्त रखे यह, खुश रखता मन को।

 

जीवन साथी प्रीति तुम्हारी, सखी लगे प्यारी,

साथ  रहे  हर  पल  महकाये, मेरे जीवन को।

 

बंधन मन का सबसे पावन, जाना तब हमने,

हाथ गहा जब तुमने मेरा, तजकर कंचन को।

 

जीवन पथ के खार न चुभते, नेह सुमन पाकर,

दूर रहे हर उलझन, गुंजन, मिलती कंगन को।

— मधु शुक्ला.सतना , मध्यप्रदेश

Related posts

अंतिम यात्रा – सुनील गुप्ता

newsadmin

कलम के जादूगर समूह द्वारा अनेको कलमकारों को ‘केकेजे हुंकार सम्मान’ से गया नवाज़ा

newsadmin

मन के भावों को झंकृत करते गीतों का संग्रह “गीत सागर” (पुस्तक समीक्षा) – सुधीर श्रीवास्तव

newsadmin

Leave a Comment