जब मन में कोई पीड़ा का भाव उभरता है,
तब दिल में भावनाओं का समंदर उठता है।
मन के विचार कब शब्दों का रूप ले लेते है,
और अल्फाजों को पन्ने पे उकेर देते है।
यह रसों में डूबते शब्द छंद बन जाते है,
जाने कब यह खुद कविताओं में ढल जाते है।
आज जब भी किसी से मैं कुछ न कह पाती हूं,
उठाती कलम और लिखती दिल की पाती हूं।
सोचती हूं गर जीवन में ये कविता न होती,
तो न जाने मैं आज कितनी ही अधूरी होती।
आज ये कविता ही मेरी सच्ची सहेली है,
यह बुझती मेरे जीवन की हर पहेली है।
इन कविताओं का हृदय होता बहुत ही विशाल,
जिसमें प्रेम, विरह वेदनाओं का होता जाल।
जाने कवि के मन में भरते कितने उदभाव,
व्यंग, श्रृंगार में लिखते अपने उर के भाव।
– झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड