समय-समय मैं कहता था,
समय की कीमत नहीं समझता था,
समय बहुत है, खेलने जाता था
समय तब निकल जाता था ।।
समय नहीं है, गुरु ने सिखलाया,
समय नही है, माता ने भी सिखलाया,
समय बहुत है बोलकर मित्र,
खेलने मुझको ले जाता था।।
समय के लिए डाँट मैं खाता,
कभी मायूस हो जाता था,
जब से मैंने समय को देखा,
तब से मैंने खेलना छोड़ा।।
समय के साथ आदत लगाई,
सुबह उठकर किताब उठाई,
समय की कीमत समझा मैंने,
तब बेहतर किया मैंने।।
©श्याम कुमार कक्षा :नवम,
सिमरा बंदरा, मुजफ्फरपुर (बिहार)