उगता सूरज, ढ़लता जाता,
जीवन अपने, धुन में गाता।
भोर उजाला, रात अँधेरा,
बदले मौसम , मन हर्षाता।
छलिया देखो, छलता जाता,
जड़ चेतन, बेबस रह जाता।
आँधी, तूफां, जाड़ा, गर्मी,
धरती, अंबर, सहते जाता।
सुखदुख झरना, झरते जाता,
इस जीवन को, पाठ पढ़ाता।
ताल मिलाकर चलना सीखों,
हर मौसम जग को समझाता।
जीवन देखो चलता जाता,
देख कली भौंरा मुस्काता।
बचपन यौवन देख बुढापा,
कैसा रचनाकार विधाता।
सबका है दुनिया से नाता,
आगे पीछे दौड़ लगाता।
आने जाने में जग माँता,
जीवन सुंदर खेल दिखाता।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड