दृश्य मनोहर लुभा रहा है , आया अतिथि अनंग।
सतरंगी आभा का जादू , पैदा करे उमंग।
हरित पर्ण वृक्षों के कोमल , पवन चले अति मंद ।
पुष्पों की शोभा हर्षाये , कविगण लिखते छंद।
ऋतु वसंत का ताना बाना , बुनने लगी बहार ।
महुआ की मदमाती खुशबू , उपजाती है प्यार ।
मुस्काये ऋतुराज धरा पर , नर्तन करें त्यौहार ।
मेल जोल का मौसम आया, खुशियाँ आईं द्वार।
ये आना जाना ऋतुओं का , देता है संदेश ।
धूप छाँव का मेल जिंदगी , होता वक्त नरेश।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश