नागरिक कानून का अब हल निकलना चाहिए ।
टहनियां तोड़े बिना ही फल निकलना चाहिए ।
देश अब घिरने लगा है मज़हबी उन्माद में ,
आग का करने शमन दमकल निकलना चाहिए ।
बैठ कर चर्चा करो अपनी कहो उनकी सुनो ,
पाटकर खाई हमें समतल निकलना चाहिए ।
कूप की बुनियाद में ही आब की तासीर है ,
जांच कर देखो वहीं पर जल निकलना चाहिए ।
वामपंथी या वहाबी जाल से बाहर रहो ,
ताम्रपत्रों से अलग पीतल निकलना चाहिए ।
शीत के आगोश में आने लगा है कारवां ,
न्याय के मंदिर से अब कम्बल निकलना चाहिए ।
जो मसीहा दिख रहे हैं मज़हबी “हलधर” यहां ,
इन दलालों के लिए पाठल निकलना चाहिए ।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून