बात तेरी चली रात भर,
शमा भी जली रात भर।
देर तलक न तू आया पर,
उम्मीद ये जगी रात भर।
तेरे जुदा होने के बाद भी ,
कैसी सजा मिली रात भर।
मेरी तो इक न सुनी उसने,
अपनी बात कही रात भर।
मौसमे-सर्दी में क्या बिछुड़े,
सर्द हवायेँ चली रात भर।
कैसी आहट थी दर पे मेरे ,
निराश जां पे बनी रात भर।
– विनोद निराश, देहरादून