लोभ लालच के गणित में लक्ष्य असली टल रहा है ।
योग पर संभोग छाया देह निश दिन गल रहा है ।।
आदमी को भोगनी है सृष्टि की स्वाधीन गतियां ।
क्यों बुढ़ापा खोजता है वो प्रणय की खास रतियां ।
बालपन बीता जवानी दे रही धोखा समय को,
राह के प्रतिकूल अब क्यों धूल मांथे मल रहा है ।।
लोभ लालच के गणित में लक्ष्य असली टल रहा है ।।1
मौत से हारी अभी तक जिंदगी की मोह माया ।
क्या कभी ये देह नश्वर पा सकी अमरत्व काया ।
क्या लिखूं इतिहास इसका जिंदगी क्षण भर कहानी ,
मोह का अभिशाप इसकी कोख में ही पल रहा है ।।
लोभ लालच के गणित में लक्ष्य असली टल रहा है ।।2
बंधनों से मुक्त होते हैं नियम क्या भू-निलय के ।
आदमी ने खोज डाले हैं स्वयं साधन प्रलय के ।
पढ़ रहा जो हस्त रेखा और मांथे की लकीरें ,
राशि फल की आड़ लेकर वो हमें क्यों छल रहा है ।।
लोभ लालच के गणित में लक्ष्य असली टल रहा है ।।3
सत्य सुंदर शिव जगत में शांति की लौ को जगाता ।
योग साधन का सहारा रोग से हमको बचाता ।
साधनों को साधना जो मान बैठे हैं अभागे ,
ज्ञान का आलेख “हलधर” नास्तिकों को खल रहा है ।।
लोभ लालच के गणित में लक्ष्य असली टल रहा है ।।4
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून