मनोरंजन

नज़्म – झरना माथुर

कैसे मिल पाये दो दिल चाहत का सफर है,

नाजुक है ये मंजिल लोगो की जो नजर है।

 

काबू कब हो पाते है ये जज़्बात मेरे,

उनसे मिलने का जो मुझपे होता असर है।

 

माना गुस्ताखी है दिल- ए- नादान की ये,

अब ये टोका-टाकी सब मुझपे बेअसर है।

 

अब रहता है मुझको उसका ही ख्याल क्यूं,

मेरी तन्हाई में वो मेरा हम सफ़र है।

– झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड

Related posts

सबने बदले रोल – डॉ. सत्यवान सौरभ

newsadmin

दोहे – अनिरुद्ध कुमार

newsadmin

ग़ज़ल – झरना माथुर

newsadmin

Leave a Comment