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रात भर सोने न दूँगी – अनुराधा पाण्डेय

सतत यामिनी तो गतिज योँ रहेगी

तुझे रात भर किन्तु सोने न दूँगी….

रचा कर महे! प्रेम मकरंद तन में ,

तुझे अंक ले मैं तकूंगी नयन में ।

कहूँगी अमर प्रीत के इन क्षणों में ,

नहीं अर्थ कुछ भी प्रिये ! है शयन में।

निमिष भी तुझे नींद की झपकियाँ हो –

नहीं ! मैं इसे आज होने न दूँगी ।

तुझे रात भर किन्तु—-

यही प्रण निभाऊँ महे! अनवरत मैं,

विरह अग्नि में अब न तू स्नात होगा ।

कटेगी तुझे बाँह में ले निशा हर,

अधर पर अधर अब धरे प्रात होगा ।

लगाऊँ तुझे नित हृदय से थपक कर-

तुझे अब कभी प्राण ! रोने न दूँगी ।

तुझे रात भर किन्तु—

न मेरी मिटेगी महक कुंतलों की,

तुझे धूप में भी सतत छाँव देगी ।

कभी अब फँसेगा न मझधार में तू

तुझे प्रीत मेरी सतत नाव देगी ।

व्यथा भार तुझको अकेले कभी अब,

किसी मूल्य पर हाय ! ढोने न दूँगी।

सतत यामिनि तो गतिज यों रहेगी,

तुझे रात भर किन्तु सोने न दूँगी ।

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली

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