आज जी ले तू जरा घर हो न हो,
सोच मत यारा सितमगर हो न हो।
आज दिखता प्यार तेरा है बड़ा,
कल भले ऐसे ही मंजर हो न हो।
माँ पिता देते हमेशा है दुआ,
कल बनेगे वो सिकंदर हो न हो।
जो मिला मौका तुम्हें वो काम कर,
क्या पता फिर तो ये अवसर हो न हो।
आ सजा ले आँसमा खुशियों भरा,
कल हमारा ये मुकद्दर हो न हो।
काम कर ले,प्यार से,बाबू जरा,
क्या पता घर मे,मिले नौकर,हो न हो।
यार बैठे है महल में प्यार से,
क्या पता ये भी मयस्सर हो न हो।
रीता गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली,चंडीगढ़