ज्ञान चक्षु का पटल,
खोल साधिए अतल,
तब बनके सफल, बिखराते हैं महक।
उर भरा हो सुमति,
लेश नहीं हो कुमति,
सत जन की प्रणति, गुण खिलते चहक।।
द्वेष का न हो पनप,
घृणा से करें झड़प,
प्रेम का रखें तड़प,बढ़े खुशी की लहक।
ईश भक्ति का लगन,
रात दिन हो मगन,
राम राम की अगन, मिटे तृष्ण की दहक।।
– प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर