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कविता – अशोक यादव

सफलता की राह नुकीले कांटे से भरा,

तू कर खुले पैरों से चुनौती का सामना।

धरा रक्तरंजित हो जाए लोहित रक्त से,

लक्ष्य हासिल करना हो अंतिम कामना।।

 

सूरज के आंख में अपलक आंखें मिला,

दृढ़ पर्वत के समान एक ठौर हो खड़ा।

आंधी और तूफानों की तरह बढ़ आगे,

आकाश से भी ऊंचा कद को कर बड़ा।।

 

बिहड़ दुर्गम पथ को कर्म से सुगम बना,

ब्रह्म मुहूर्त में उठो, जागो सूर्य से पहले।

अंधेरे रुपी डर का कर अकेला सामना,

दिखाई देगा उम्मीद की किरण सुनहले।।

 

धैर्य रखकर सही समय का इंतजार कर,

तीव्र गति से अपने कदमों को बढ़ाते चल।

मन में निश्चय,वचन में अडिग हो डटा रह,

कर्ता प्रभु को मान सकर्मक बन निश्चल।।

 

कामयाबी परमपिता परमात्मा के सदृश्य,

लक्ष्य हासिल करने के लिए तपस्वी बन।

निर्जन स्थल बैठ तन्मयता से ध्यान लगा,

जीत का वरदान प्राप्त कर यशस्वी बन।।

– अशोक कुमार यादव, मुंगेली, छत्तीसगढ़

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