मनोरंजन

शख्शियत तलाशती मैं – राधा शैलेन्द्र

बड़ी बेसब्र होकर

अपनी शख्सियत तलाशती हूँ,

आइने के रूबरू जब खुद को पाती हूँ।

कहाँ छोड़ आई हूँ खुद को,

ये सवाल अतीत से करती हूँ,

सोये हुए अरमानों से,

ये सवाल बार- बार करती हूँ!

एक चंचल नदी थी जो

आज खामोश सी ही गयी है

जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते

अपना वजूद ही खो चुकी हूँ!

‘अरमान’ है इस दिल के भी

शायद भूल चुकी हूँ मैं

मकान को घर बनाते-बनाते खुद को

भूल चुकी हूं मैं!

रिश्तों का एक हुजूम जो चलता था

साथ -साथ

वक़्त

और जरूरत के साथ उनके मायने बदल गये

आज उन्हीं रिश्तों की गर्माहट ढूंढती हूँ

जो नहीं दिखती अब

इर्द-गिर्द भी!

लेकिन तलाश अब भी जारी है

मिल सके सकूं के पल

इन्हीं रिश्तों में कहीं?

आईने के सवालों का जवाब देना चाहती हूं

खुद आईना बनकर मैं।

– राधा शैलेन्द्र, भागलपुर, बिहार

Related posts

‘चरण’ और ‘मरण’ के कोण में घिरा हरियाणा का ‘रण’ – डॉ सत्यवान सौरभ

newsadmin

हिंदी दिवस – ममता सिंह

newsadmin

विश्वकवि गोस्वामी तुलसीदास – डॉ. हरि प्रसाद दुबे

newsadmin

Leave a Comment