भेदभाव संजीवनी, जातपात खलिहान।
सामाजिक खेती यही, सेवा में सुखशान।१।
धनबल बाहुबल सदा, लोकतंत्र की जान।
जोड़तोड़ काबिज रहो, चूको जन चौहान।२।
नफरत राग अलापना, बात बात व्यवधान।
अपनी रोटी सेंकना, जनमत तो नादान।३।
भूख गरीबी भूलजा, बाधक इनकों जान।
करना विकास जापते, हस्ती बनो महान।४।
सत्ता पे काबिज रहो, सर्व कुल खानदान।
बहुमत का जयगान हो, सत्तासुख पे ध्यान।५।
देश प्रेम रटते रहो, निजहित को पहचान।
अजर अमर कह कौन है, चलते रहे दुकान।६।
आस्वासन देते रहो, कर्मठ बनो जवान।
पीछे पीछे जन चले, अवसर को पहचान।७।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड