मनोरंजन

गजल— मधु शुक्ला

आज बढ़तीं ख्वाहिशें दुश्मन बनीं ईमान कीं,

मृत सभी संवेदनाएं हो गईं इंसान कीं।

 

जब कमाई थी नहीं ज्यादा सुखी तब लोग थे,

थीं नहीं तब मीत सबकीं ख्वाहिशें सुल्तान कीं ।

 

गुण कभी सम्मान पाते थे हमारे देश में,

अब प्रशंसक हो गईं आँखें सभी परिधान कीं।

 

कर सकें सामर्थ्य का यदि कामनाएँ आकलन,

उस समय ही छू सकेंगीं नभ ध्वजायें ज्ञान कीं ।

 

शक्तिशाली ‘मधु’ धनिक होता नहीं संसार में,

वक्त के आगे झुकीं हैं ख्वाहिशें बलवान कीं।

— मधु शुक्ला , सतना , मध्यप्रदेश

Related posts

गीत – झरना माथुर

newsadmin

गीतिका – मधु शुक्ला

newsadmin

माँ की ममता = ममता जोशी

newsadmin

Leave a Comment