विकास की इस राह पे हम जाने कहाँ खो गये,
जाने क्या पा गये और जाने क्या खो गये।
पेड़ कटे और राह में जो आये वो सब टूटे,
फोर लेन बन गयी प्रकृति से खिलवाड़ कर गये।
किस-किस बहाने से सड़के बनती टूटती गयी,
टेंडर पास हुए ठेकेदार मालदार हो गये।
रफ्तार बढ़ाने की खातिर नये रास्ते बना दिये,
अब तो लगता है दिल्ली के एनसीआर मे आ गये।
रिश्ते, अपने साथी सभी ही पीछे छूट गये,
आगे बढ़ने की चाह में हम मदहोश हो गये।
विकास की इस राह पे हम जाने कहां खो गये,
जाने क्या पा गये और जाने क्या खो गये।
– झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड