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प्रदूषित वायु (मुक्तक) – कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

जानबूझ कर गलती करता, मानव बाज न आता है।

सर्व प्रदूषण से हम सबका, अतिशय गहरा नाता है।

पहले तो खुद गलती करता, फिर सब घुट-घट कर जीते,

स्वच्छ हवा अब होती दूभर, ढीठ नहीं पछताता है।

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मानव की जीवन शैली का इससे रिश्ता है गहरा।

अंध प्रगति ने स्वाँस-स्वाँस पर, लगा दिया  घातक पहरा।

जला पराली नित खेतों में, ठेंगा नित्य दिखाते हैं,

आदेशों का ध्यान न रखता, जैसे हो अंधा बहरा।

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पैदल चलना भूल गए हम, वाहन पर सब चलते हैं।

पैदल चलने वाले अब तो, रह-रह आँखें मलते हैं।

सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था, लचर हुई है शहरों में,

तरह-तरह के वादे करके, शासक सबको छलते हैं।

– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश

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