मनोरंजन

ग़ज़ल – विनोद निराश

शबे-तन्हाई तूने पुकारा ही नहीं,

तेरी याद के सिवा चारा ही नहीं।

 

राहे-सफर में तेरे बिछुड़ने के बाद,

इस दिल में कोई उतारा ही नहीं।

 

शामे-मंज़र और आलमे-तन्हाई,

जहां में ऐसा नजारा ही नहीं।

 

यूँ तो गली से कई बार गुजरे,

पर तूने कभी पुकारा ही नहीं।

 

सफरे-इश्क़ बहुत महंगा रहा,

दुबारा करूँ ये गवारा ही नहीं।

 

जीना इतना सस्ता कहां रहा,

पर मरने का इशारा ही नहीं।

 

नींद बेवफा हुई तेरी तरहा और,

ख्वाबे-यार बिना गुज़ारा ही नहीं।

 

तेरे बेखबर होने के बाद निराश,

जहां में अब कोई सहारा ही नहीं।

–  विनोद निराश , देहरादून

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