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मधुर सम्बन्धों का पुनर्गठन – मुकेश मोदी

neerajtimes.com- हम सब मनुष्यात्माएं अनन्तकाल से जीवन यात्रा पर हैं । मृत्यु के अल्पकालिक पड़ाव के बाद आत्मा नया जन्म पाकर सुखद, शान्तिपूर्ण, मनहर्षक और रोमांचक जीवन की अभिलाषा लिए इस यात्रा पर पुनः निकल पड़ती हैं ।

जीवन में सुख, शान्ति, प्रेम और आनन्द की शुद्धाभिलाषा लिए हम मित्र बनाते हैं, पारिवारिक सम्बन्ध स्थापित करते हैं । आपस में एक दूसरे से सहयोग लेते और देते हुए हम जीवन में सुखद अनुभूतियां करते और कराते हैं । किन्तु ऐसा क्या हो रहा है कि पीढ़ी दर पीढ़ी पारिवारिक सम्बन्धों में मिठास, प्रेम और अपनत्व के आनन्द का अभाव बढ़ता ही जा रहा है ? जीवन रूपी झोली में ऐसा कौन सा छिद्र है जिसमें से पारिवारिक सम्बन्धों की समस्त मधुर और सुखद अनुभूतियों का रिसाव हो रहा है ?

हर व्यक्ति को सुखद अनुभूति कराने वाले शब्द ही सुनना प्रिय है । यह मनोवृत्ति लगभग हर व्यक्ति में विद्यमान है कि उसके जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक घटना, हर मित्र सम्बन्धी का व्यवहार उसकी इच्छाओं और भावनाओं के अनुरूप हो, किन्तु हमेशा ऐसा नहीं हो पाता । कई बार हम किसी की व्यवहार स्वीकृति की मनोवस्था को समझे बिना आपत्तिजनक व्यवहार कर बैठते हैं या आलोचनात्मक भाषा बोलने की गलती कर देते हैं जिससे हमारे मधुर सम्बन्धों को होने वाली अपूर्णीय क्षति का हमें आभास ही नहीं होता ।

किसी की आलोचना करके, उपहास या अपमान करके अपनी तामसिक सन्तुष्टि व सुकून को पोषित करना ऐसी मनो विकृति है जिसके परिणामस्वरूप देर सबेर जब सम्बन्धों की मिठास में कटुता, वैमनस्य, मतभेद, मनमुटाव आदि कड़वेपन की मिलावट होने लगती है । गलती का एहसास होते होते बहुत देर हो चुकी होती है । बिखरते हुए सम्बन्धों के परिणामस्वरूप जीवन की सुखद अनुभूतियों में कमी आने पर हम आत्म ग्लानि की अवसादमय मनोदशा के शिकार हो जाते हैं ।

बिगड़े हुए सम्बन्धों को पुनः सुधारना कठिन अवश्य है किन्तु असम्भव नहीं । अपनी भूल का एहसास होने पर सबसे पहले अन्तर्मन में बैठे अपराध बोध का भाव त्यागना आवश्यक है, तभी सम्बन्धों को मधुर बनाने की शुरूआत हो सकती है । अतीत की गलतियों को लेकर मन में अपराध बोध को पालने या बार बार आत्म आलोचना करने से हमारी ही चेतना शक्ति का ह्रास होता है । अपराध बोध का भाव हमारे मन में कड़वापन भर देता है । बार बार गलतियों के बारे में सोच सोचकर दुखी होना सम्पूर्ण जीवन को शक्तिहीन बनाने वाला एक अवसाद रोग है । बेहतर तो यही होगा कि हम अपनी उर्जा का संरक्षण कर उस गलती को ना दौहराने का दृढ़ निश्चय करें । गलती का बोध होने का अर्थ है कि इसे सुधारने के लिए प्रतिबद्ध हो जाना चाहिए, ताकि नकारात्मक विचारों के कारण मन में उत्पन्न होने वाली अवसादमय पीड़ा को मिटाया जा सके ।

इसके लिए स्वयं को ज्ञान स्वरूप, शान्त स्वरूप, प्रेम स्वरूप, सुख स्वरूप, पवित्र स्वरूप, आनन्द स्वरूप और शक्ति स्वरूप आत्मा के रूप में जागरूक रखना चाहिए जो प्रतिदिन आत्म साधना अथवा ध्यान से ही सम्भव है । यह आत्म जागरूकता जितनी बढ़ती जाएगी, उतनी ही सात्विकता हमारे जीवन में प्रवेश करती जाएगी । तब हमें हमारे ही उस श्रेष्ठ, संभ्रांत, कुलीन, सर्वप्रिय और त्रुटिरहित व्यक्तित्व का परिचय होगा, जिसे आत्मसात करके हम प्रत्येक छोटी से छोटी गलती से विरत होते जाएंगे।

अपने गलत आचरण से प्रभावित होने वाले मित्र, सम्बन्धियों से मौखिक रूप से क्षमा मांगने और भावनात्मक रूप से उन्हें स्नेहपूर्ण, सकारात्मक व शक्तिशाली प्रकम्पन भेजने से उन्हें भी आपसी सम्बन्धों के प्रति सकारात्मक मनोवृत्ति को जन्म देने में सहयोग करेगा । हमें अपने स्वभाव को सहज रूप से निर्मल, सरल व शान्त बनाकर धैर्यता के साथ यह प्रयास निरन्तर जारी रखते हुए सम्बन्धों में सुधार होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए । यह अटल सत्य है कि शुद्ध मनोवृत्ति से किया गया कोई भी कार्य असफल नहीं होता, उसे अन्ततः सफलता ही मिलती है । तो आईए, हम आत्मिक गुणों के आधार पर सबको निस्वार्थ स्नेह व सहयोग देते हुए अपने बिगड़े हुए मधुर सम्बन्धों को पुनर्गठित करने का सफल प्रयास करें ।

– मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान, मोबाइल नम्बर 9460641092

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