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घोर व्यथा है – प्रियदर्शिनी पुष्पा

मौन निमिष में घोर व्यथा है,

नैन बहे जल पीर जथा है।।

 

भग्न हृदय में जीवित अब भी,

आँसू कहती प्रीत कथा है।

 

नेह उमड़ती है क्षण-क्षण ज्यों,

अंतस में कोई जख्म मथा है।

 

मैं मृदु मोम विरह का टुकड़ा,

तुम पाषाणी प्राण तथा है।

 

चिर शाश्वत यह प्रेम प्रतीक्षा,

विरहा तो बस एक अथा है।

 

‘पुष्प’ अटल है अपने पथ पर,

संग सुमन ज्यों शूल यथा है।।

– प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर , झारखण्ड

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