एक छोटा आँफिस,
आँफिस में अर्पित ।
काम के प्रति हमेशा,
तत्पर और समर्पित ।
सुबह से शाम,
दिमाग में बस काम..
काम की पी थी,
ऐसी जनम घुट्टी ।
ना बुट्टी, ना छुट्टी ।
बात भी कम ही,
जैसे की हो कट्टी।
घर में भी न आराम,
बस्का म काम काम..
काम की ऐसी लगन,
हो जाता पूरा मगन ।
अगर कोई आये विघ्न,
काम की तंद्री,
होती भी भग्न ।
थाेड़ा मुस्कराता,
रहता शांत..
ना झुंझलाहट,ना आकांत।
करता ऐसी बात,
गर्मजोशी से मिलाकर हाथ।
मुस्कराता चेहरा,
दिल भी शांत.. शांत..
होते ऐसे निराले,
काम के प्रति समर्पित,
हर जगह अर्पित…
✍️प्रदीप सहारे, नागपुर , महारष्ट्