मनोरंजन

प्रभाती मुक्तक: – कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

“जीवन दर्शन”

जीवन का पहिया चलता नित, थकता कभी न रुकता है।

अपनी गति से बढ़ता जाता, कभी नहीं यह थकता है।

समय चक्र को हम स्वीकारें, क्लेश नहीं होगा मन में,

भाव एक सा रखिये हरदम, जीवन-दर्शन कहता है।

 

“चित्र के रहस्य”

रंगों के शुभ संयोजन से, चित्र अनेकों बनते हैं।

आड़ी-तिरछी रेखाओं में, बिंब छिपे कुछ रहते हैं।

भावों को रंगों में घोलें, चित्र उभरते अपने आप,

चित्र बोलते मौन स्वरों में, अंतस सदा उतरते हैं।

– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश

Related posts

गजल – रीता गुलाटी

newsadmin

ग़ज़ल – झरना माथुर

newsadmin

गजल – मधु शुक्ला

newsadmin

Leave a Comment