“जीवन दर्शन”
जीवन का पहिया चलता नित, थकता कभी न रुकता है।
अपनी गति से बढ़ता जाता, कभी नहीं यह थकता है।
समय चक्र को हम स्वीकारें, क्लेश नहीं होगा मन में,
भाव एक सा रखिये हरदम, जीवन-दर्शन कहता है।
“चित्र के रहस्य”
रंगों के शुभ संयोजन से, चित्र अनेकों बनते हैं।
आड़ी-तिरछी रेखाओं में, बिंब छिपे कुछ रहते हैं।
भावों को रंगों में घोलें, चित्र उभरते अपने आप,
चित्र बोलते मौन स्वरों में, अंतस सदा उतरते हैं।
– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश