पूरा हुआ अज़ाब चलो लौट घर चलें ।
कानून का दबाव चलो लौट घर चलें ।
साकी न है शराब चलो लौट घर चलें ।
सोचो नहीं जनाब चलो लौट घर चलें ।
है मयकदा भी दूर अभी काम क्या करें ,
खाएं रखा पुलाव चलो लौट घर चलें ।
बेकार भटकने से कोई लाभ ही नहीं ,
पढ़ लें कोई किताब चलो लौट घर चलें ।
हटती नहीं जमात क्यों शाहीन बाग से ,
मुंह पर चढ़े नक़ाब चलो लौट घर चलें ।
माने जिसे रकात वही माल पाक का ,
खुलने लगा हिजाब चलो लौट घर चलें ।
जो काम है खुदा का बशर हाथ में न लें,
क्यों बन रहा नबाव चलो लौट घर चलें ।
आया खिजां से जीतकर गुलशन बहार में,
तोड़ो नहीं गुलाब चलो लौट घर चलें ।
छेड़ो नहीं उफान नदी तेज हो रहा ,
मौसम हुआ खराब चलो लौट घर चलें ।
हलधर रखो लगाम जरा खींच तान के,
टूटे न ये रकाब चलो लौट घर चलें ।।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून