ये राज आज उसने गुजरते हुए कहा ।
आती जवानी याद ये मरते हुए कहा ।
जन्नत जमीं पे आसमां प्रश्नों का जाल है ,
उसने किसी जमात से डरते हुए कहा ।
चहरे की झुर्रियां घनी उसका गवाह थी ,
सांसों को डोर आखिरी भरते हुए कहा ।
आया बुढ़ापा जिंदगी है शांत झील सी ,
सामान उसने बांधते धरते हुए कहा ।
बाकी नहीं है आग अब बूढ़े अलाव में ,
चिंगारियों ने अलविदा करते हुए कहा ।
सच्ची सहेली मौत बेईमान जिंदगी ,
सबने यही खयाल उतरते हुए कहा ।
“हलधर” को क्या शऊर सलीका है ग़ज़ल का ,
उसने मेरा कद और उभरते हुए कहा ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून