इस कटघरे में खड़े हो कर
अपनी सफ़ाई में
बस इतना ही कहना है जज साहब!!
वो बहुत बड़े आदमी हैं
मैं तो बेकार की चीज़ हूँ!
उन्होने मुझे पीटा
मैंने आंख उठाकर देखने की
गुस्ताखी की!
उन्होने मेरे पेट पर लात मारी
मैंने दर्द के मारे चीखने की
ज़ुर्रत की!
उसकी गूंज
उनके नाज़ुक कानों से हो कर
उनका दिमाग़ खदेड़ दी!
और मैं मारा गया जज साहब!
अब आप जो सज़ा सुनाएंगे
वो मैं भुगतने को तैयार हूँ!
लाचार जरूर हूँ साहब कायर नहीं हूँ
बड़े लोगों के लिए मैं
बार बार मरने के लिए तैयार हूँ!
– मीरा मेघमाला, मैसूर, कर्नाटक