वो दिल को मेरे जलाते रहे,
सब्र को मेरे आजमाते रहे।
फकत हम ही तो रहे प्यासे,
सबको आँखों से पिलाते रहे।
दावा-ए-उल्फत किया हमसे,
दिल रकीब का बहलाते रहे।
वो रहे बेखबर ख्याले-यार से,
और हम खुद को जलाते रहे।
रखा सदा महफूज़ उसे दिल में,
जो तीरे-नज़र हमपे चलाते रहे।
जो रहे हमसे बेखबर दानिस्तां,
तोहमत हमपे वही लगाते रहे!
बेशक रहे गाफिल हमसे मगर,
निराश रस्में-इश्क़ निभाते रहे!
– विनोद निराश, देहरादून