खिसियानी खंभे को नौंचे, कौतुक देखो बिल्ली का ।
रूप बदलता नहीं सुहाया,उसको मेरी दिल्ली का ।।
जनहित के मुददे से हटकर ,अपना रस्ता मिड रही ।
राम लला के मंदिर पर भी ,बिल्ली नाक सिकोड़ रही ।
चुपके से जिंगपिंग के घर भी, बिल्ली जाय घुसी यारो ।
सर्जिकल स्ट्राइक पर भी, बिल्ली नहीं खुशी यारो ।
जन कल्याण दिशा में हमने ,जो भी कदम उठाए हैं ।
बेशक अच्छे योजन हैं पर, बिल्ली को कब भाए हैं ।
बिल्ली को सरकारी निर्णय रास नहीं आ पाए हैं ।
अब तक संसाधन बिल्ली ने,चूहे मान चबाए हैं ।
बर्फ गलाकर पूछ रही है,दाम बताओ सिल्ली का ।।
खिसियानी खंभे को नौंचे ,कौतुक देखो बिल्ली का ।।1
दफा तीन सौ सत्तर पर भी, बिल्ली है नाराज़ बहुत ।
दुनिया में उपचार कराया ,तबियत है नासाज बहुत ।
सी ए ए कानून बना तो ,खूब किया हंगामा जी ।
सारी दुनिया के मुल्ले ज्यों, लगते इसके मामा जी ।
एक देश में एक टैक्स भी ,इसको रास नहीं आया ।
संसद में हंगामा काटा ,रोज रायता फैलाया ।
जिन चूहों के लिए लड़ी वो,चूहे पास नहीं आए ।
कड़े फैसले बड़े फैसले ,इसको खास नहीं भाए ।
खाल खसोटी है भारत की ,नाम न छोड़ा झिल्ली का ।।
खिसियानी खंभे को नौंचे, कौतुक देखो बिल्ली का ।।2
अग्नि वीर सा नेक प्रयोजन ,इसको नहीं सुहाया है ।
खूब किया गुमराह देश को ,भारत रोज जलाया है ।
इतना सुंदर योजन भी ,बिल्ली को तनिक नहीं भाया ।
रेल ,बसों को आग जलाकर ,मुद्दा इसने गरमाया ।
चार साल की सेवा में,निर्माण छिपा है भारत का ।
शिष्ट नागरिकता में ही,कल्याण छिपा है भारत का ।
ऐसे सुघड़ प्रयोजन पर भी, बिल्ली ने उन्माद किया ।
भोले लोगों को भड़काया, संंपति को बर्बाद किया ।
आग जलाने को फिरती ले, डब्बा माचिस तिल्ली का ।।
खिसियानी खंभे को नौंचे ,कौतुक देखो बिल्ली का ।।3
हिंदू मुस्लिम के मुद्दे को, गरमाने में लगी हुई ।
पत्थरबाजों की टोली को ,फुसलाने में लगी हुई ।
संसद की नवमूरत इसको , ठीक नहीं लगती यारो ।
शेरों की सूरत भी ठीक नहीं लगती यारो ।
वीर शहीदों की यादों का , भवन नहीं भाया इसको ।
अमर जवान ज्योति का ,उसमें मिलन नहीं भाया इसको ।
सौ सौ चूहे खाकर ये , हज करने को तैयार खड़ी ।
बेटे की चिंता में अब बिल्ली बीमार पड़ी ।
खेल भाजपा खेल रही है ,चक दे फट्टे किल्ली का ।।
खिसियानी खंभे को नौंचे ,कौतुक देखो बिल्ली का ।।4
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून