neerajtimes.com- देश में नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनते रहे और उनका अनुपालन भी होता रहा, किन्तु भारत मे स्वतंत्रता के बाद भी सरकारी कामकाज मे अंग्रेजी भाषा का प्रयोग और भारतीय न्यायालयों के फैसले व केन्द्रीय कार्यालयों तथा भारतीय लोक सेवा आयोग की परिक्षाओं का माध्यम अभी भी अंग्रेजी को बनाए रखना अत्यंत निन्दनीय और चिन्ता का विषय है, जो अभी भी भारतीयों के रग-रग मे अंग्रेजियत की गुलामी काली छाया की तरह रच बस गयी है, एवं हिन्दुस्तान की हिंदी भाषा पर ग्रहण की तरह विद्यमान है। जिन्हें अंग्रेजी पढ़ने और बोलने का शौक है वे उसे एक भाषा के रुप मे पढें, जैसे देश मे अन्य तमाम भाषाएं प्रचिलत हैं, लेकिन अंग्रेजी को शिक्षा और सरकारी कामकाज का माध्यम बनाकर हिंदी को अब और अपमानित न किया जाए।
अगर हम हिन्दुस्तान मे हिंदी को राष्ट्रभाषा नही मानेंगे तो इससे दु:खद भारत देश के लिये कुछ और हो ही नही सकता। भारत मे 70% नागरिकों द्वारा हिंदी बोली जाती है, जो अन्य बोली जाने वाली भाषाओं मे सर्वाधिक है। हिंदी देववाणी से उद्धृत है,इसी लिए देवनागरी के रुप मे प्रतिष्ठित है।
जब तक स्कूलों की शिक्षा का माध्यम हिन्दी मे नही होगा तब तक भाषाई विभेदीकरण चलता रहेगा। इसके कारण ही हिंदी निम्न दृष्टिकोण से मूल्यांकित है । जब तक सरकारी कामकाज, राष्ट्रीय प्रतियोगी परीक्षाओं और न्यायलयों के निर्णय में हिंदी को माध्यम नही बनाया जायेगा तब तक हिंदी को उचित सम्मान नही मिल पायेगा। हम किसी क्षेत्रीय अथवा प्रान्तीय भाषा के विरोधी नही है, लेकिन कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप मे प्रतिष्ठा मिले तो पूरे विश्व मे हिंदी को वास्तविक सम्मान मिलेगा।अभी हाल ही गत माह ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा हिंदी को कामकाज की भाषा के रुप मे प्रतिष्ठित किया गया है, किन्तु अपने ही देश मे हिंदी अभी भी उपेक्षा पूर्ण नीति का शिकार है। अतः सरकार हिंदी को अविलंब राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता प्रदान करें जो राष्ट्र हित मे निर्णायक सिद्ध होगा। – (एक भाषा एक विधान – मेरा भारत देश महान) पुरुषोत्तम लाल सोनी “मतंग” ,लखनऊ,उत्तर प्रदेश संपर्क -९३३५९२११०६