बच्चें सभी होते हैं, कोमल कोमल फूल।
बचपन में इसके कभी , नहीं चुभाना शूल।।
ऐसा कुछ नहीं करना, जीवन जाए रूठ।
बचपन ही सब कुछ है, बाकी सब तो झूठ।।
ज्ञान का घर ज्ञानालय, प्रेम का प्रेमालय।
बच्चों का रहा बचपन ,बाकी सब शवालय।।
विद्यालय एक मंदिर, यहां खिलाओ फूल।
बच्चों सा सुंदर कौन, क्यों बोते हो शूल।।
किसको क्या मिलता है,कितना सुन्दर सुख।
जो बचपन मार रहा,दे रहा उनको दुख।।
शिक्षा का आदेश सुनो,सुनो पिता-निवेदन ।
और शांत करो उनके, दुखों का हर क्रंदन।।
करम तुम्हारा इतना , करना नव निर्माण।
विद्या तो पेशा नहीं, है जग का निर्माण।।
– नीलकान्त सिंह नील, बेगूसराय, बिहार