कर्म से भाग्य है क्यों बली,
आज चर्चा इसी पर चली।
आलसी चैन से खा रहा,
जिंदगी मेहनती की जली।
हैं सभी ईश के पुत्र पर,
बीजना श्री न सब पर झली ।
रुग्ण तन जी रहा सौ बरस,
मिट गई दो दिवस में कली।
चाह संतान की है अगर,
क्यों न कन्या लगी है भली।
श्रम न कम कर रहीं हैं स्त्रियाँ,
साधना पर न उनकी फली।
जब नहीं ज्ञात है कल हमें,
कर्म की ‘मधु’ गहें हम गली।
– मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश.